Sunday, 18 November 2018

जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका (Role of Bismarck in Unification of Germany)

जर्मनी के एकीकरण में बिस्मार्क की भूमिका (Role of Bismarck in Unification of Germany)


Jurmny ekikaran image







बिस्मार्क ने जर्मनी के एकीकरण के लिए नयी नीति अपनाई थी, जिसके चलते उन्हें man of blood and ironभी कहा जाता है. बिस्मार्क जनतंत्र का विरोधी और निरंकुश शासन का समर्थक था. वह राजतंत्र पर किसी प्रकार का संवैधानिक प्रतिबंध नहीं लगाना चाहता था. उसे संसद, संविधान और लोकतंत्र के आदर्शों से घृणा थी. उसका विश्वास था कि जर्मनी के भाग्य का निर्माण राजा ही कर सकता है. उसने क्रांतिकारियों और उदारवादियों की कटु आलोचना की. बिस्मार्क का उद्देश्य प्रष को शक्तिशाली राष्ट्र बनाकर उसके नेतृत्व में जर्मनी का एकीकरण (Unification of Germany) करना चाहता था. उसका दूसरा उद्देश्य ऑस्ट्रिया को जर्मन परिसंघ बाहर निकालना था, क्योंकि एकीकरण के मार्ग में सबसे बड़ा बाधक ऑस्ट्रिया था. साथ ही वह जर्मनी को यूरोप में प्रमुख शक्ति बनाना चाहता था. उसने प्रशा की सेना का संगठन कर उसे यूरोप का शक्तिशाली राष्ट्र बना दिया. उसने कूटनीतिक माध्यम से ऑस्ट्रिया को कमजोर बनाने का प्रयास किया. बिस्मार्क ऑस्ट्रिया के विरुद्ध रूस से मित्रता चाहता था.



नेपोलियन प्रथम का योगदान

नेपोलियन प्रथम ने जर्मनी के 300 राज्यों को समाप्त कर डच राज्यों का एक संघ बनाया. उसने फ्रांसीसी क्रांति  के सिद्धांतों से जर्मनी के लोगों को परिचित कराया. उसने अपने अधीनस्थ राज्यों में अपना 'कोड” भी लागू किया. इससे जर्मनी के लोगों में राष्ट्रीय चेतना जगी और वे जर्मनी को एक सुसंगठित राष्ट्र के रूप में देखने लगे.






वियना कांग्रेस के निर्णय के विरुद्ध जर्मनी में प्रतिक्रिया

वियना कांग्रेस के द्वारा जर्मनी को पुनः छोटे-छोटे राज्यों में विभाजित कर दिया गया था. उनका एक संघ बनाया गया जिसका अध्यक्ष ऑस्ट्रिया का सम्राट था. वियना कांग्रेस की व्यवस्था से जर्मनी के निवासियों में असंतोष उत्पन्न हुआ, क्योंकि उन्हें नागरिकता के अधिकार से वंचित रखा गया.
जर्मनी के एकीकरण (Unification of Germany) के आर्थिक तत्त्वों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण थी. प्रशा के नेतृत्व में जर्मनी का आर्थिक एकीकरण हुआ. आर्थिक एकीकरण ने राजनीतिक एकीकरण के लिए मार्ग तैयार किया. आर्थिक एकीकरण ने जर्मनी के विकेंद्रीकरण में सहायक प्रादेशिक और राजवंशीय प्रभाव को कम कर दिया. जर्मनी के एकीकरण (Unification of Germany) में औद्योगिक विकास से भी सहायता मिली. जर्मनी का पूँजीपति वर्ग मजबूत केन्द्रीय सरकार का समर्थक बन गया. जर्मनी के एकीकरण में रेल-लाइनों की भूमिका भी महत्त्वपूर्ण थी. इससे एकीकरण के मार्ग की प्राकृतिक बाधाएँ दूर हो गयीं. 










राष्ट्रीय विचारों का आदान-प्रदान सरल हो गया. औद्योगिकीकरण की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जर्मनी का एकीकरण (Unification of Germany) आवश्यक हो गया. 









सम्पूर्ण जर्मनी के लिए एक प्रकार के सिक्के तथा एक प्रकार की विधि-व्यवस्था की माँग की गयी. इस प्रकार आर्थिक जीवन में परिवर्तन से भी एकीकरण आन्दोलन को प्रोत्साहन मिला.

Saturday, 10 November 2018

Plasi ka yudh,1757प्लासी का युद्ध - The Battle of Plassey 1757 in Hindi -

Plasi  ka yudh,1757

Aligadh  ki sandhi ke jariye  bangal me anek  suvidha mil  gai thI. 

Iske bavjud  very bangal  par adhikar karna  chahte  the.

Plasi ka yudh  image





Iske  liye  unhone  uske  liye kuchh  taiyari  shuru  kar di. Qlaive  ne fancicy  basti  chandrma nagar  par adhikar karna liya , or nawaab  kuchh  nahi kar saka .

  Nawab ke dushmano  ko Qlaive ne apni  shurksha   me   le liya  qlaive ne sainapati   mir  zaafar   ,Rain durlabh  ,jagat  set, or aamir  chand  ke sath  ek gupt  samjhota  kar liya ,jiske anusaar   sirajdollah   ko hatakar  mir zaafar ko bangal ka nawab  banaya  jana tha .


 Ek plan kemail anusaar  yudh  ka bahane kI khoz  ki .
 Nawab par alinagar  ki sandhi bhang  karne ka arop  lagaya  gaya .
Arop  legate hi qlaive  saina sahit  murshidabaad ke liye  chal pad and. 
23 June  1757  ko  Qlaive or nawab ki saina ke bich plasi ke maiden Memail yudh  hua .

Nawab ke sainapati  mir zaafar Rai durlabh or  yarlist  khan chupchap  yudh   ka  nazara dekhte rahe.
Nawab   parajit  hua.
 Or isko  mir zaafar  ke patra miran ne dala.



Sainik drasti   se plasi  ke yudh ka koi mahatva  nahi  tha.




 Magar Rajniteek  or arthik  drasti  se is yudh  ka  adhik mahatva hai   bangal ka nawab mir zaafar angrzo  ke hatho  kI kataputali   bankar   rah  gaya   .


Bangal ke Rajniteek jivan par angrezo   ka hi  adhikar   tha.
 Arthik   drasti   se plasi yudh  ke baad bangal ki lut   shuru  ho gai  .


 Mir zaafar ne 3 crore   rupey   angrzo  ko diye  .


Bangal ,bihaR  or udissa   me text free   vyapar  ka adhikar  MILa   .

Company   ko kalkatA   ke pass   24 pargana  ki jamidaari   mili   kalkatA   tha .


KalkatA  me  c7ompany  ko sikke dhalne  ka adhikar  mila  .


Is  prakar  plasi ke yudh  ne company  ko bangal  ki satta  de   di





Thursday, 8 November 2018

Bharat vibhajan or mountbain ki bhumika माउंटबेटन योजना और भारत के विभाजन

Boston ki Chai paani

Bharat vibhajan  or mountbain  ki bhumika


Lord mountbain  Bharat ke vibhajan or satta  par tvarit hastakshar  ke liye Bharat aaye.

Shuruat  me ye satta  hastnartan  vibhajit  Bharat ki  Bhartiya  sarkaron ko dominiyam  ke darze  ke rup  me  jaani  thi. 

Bharat vibhajan image

5 June  ko lord mauntbain  ne apni yojna  pesh  ki ,jisme  Bharat ki rajniteek samsya  ko khatm  karne  ke  anek  prakar  ke  charno  ki ruprekha  pesh ki thi  .





Shuru me yr satta  hastantaran   vibhajit Bharat ki Bhartiya sarkaro ko dominiyam ke darze ke rup  me di jaani  thi  .




Mauntbain  ki yojna-


1) Bharat  or Pakistan ko vibhajit karna .

2) bangal  or punjab  ke vibhajan or uttar  purviya  seem a prant or asam ke Dilham jile  me sangrah  kiya  jayega.

3)Pakistan ke liye savidhan  nirman  ke liye   ek alag  savidhan  sabha  ka gathan  kiya  jayega  .
4) riyasate  ko chhut  hogi ki  vo ya to Pakistan  ya Bharat  me shamil  ho ya khud ko  swatantra  goshit  kar dena. 

6) Bharat  or Pakistan  kof satta  hastantaran  ke liye  15 August  1947 ka din chuna  jayega. 


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7) British sarkar  ne swatantrata  adhiniyam 1947  kof July  1947 ko parit kar diya .
Isme hi vo mukhya  pravdhan  shamil the   jinhe  mauntbain yojna ke jariye  aage badhaya  gaya. 

Vibhajan  or  swatantra-
1)sabhi Rajniteek partyon  ne mauntbain yojna ko maan  liya.

2)sir Red klicfe ki adhyakshta  me 2 ayogo  ka British sarkar ne gathan  kiya, jiska kaam  tha  vibhajan ki dekhna  or  naye  gathit  hone wale  desho  ki international border  ko  nischit  karna. 
3) Swatantrata ke samay  Bharat me 562 chhoti   badi  Riyasate  thi.

4)Bharat ke pehla  grahmantri ballabh bhai patel ne is vishay  me kathor  nitee  ka palan  kiya. 
15th Aug 1947 tak jammu kashmir, jhunagadh or haidrabaad  jaise  kuchh  apvaado  ko chhodkar  sabhi  Riyasaton ne vilaypatra  par hastakshar  kar diye the.
Goa par purtgaaliyon or  paanduchery par francysiyo  ka  adhikar  that. 



Wednesday, 7 November 2018

Liyaquat or desai देसाई-लियाकत प्रस्ताव (AD 1945)


देसाई-लियाकत प्रस्ताव (AD 1945)

Mahatma gandhi ne ye MAAN liya ki jab tak Congress  or Muslim community  desh ke bhabishya ya Antrim  sarkar  banane ke kisi  natije  par nahi pahuch  jaati . Tab tak British sarkar desh ko azad  nahi kare gi. 

Desai liyaquat prastav image






Is liye mahatma gandhi  ne bhulabhai jivan ji desai ko Muslim community  ke naita ko khush  karne or 1942-1945 ke rajniteek  gatirodh  ko door karne ka ek or prayas ke nirdesh  diye.




Desai kendriya  sabha me Congress ke naita liyaquat  ali ke mitra  hone naate liyaquat mile or January 1945 me kendra  me Antrim sarkar ke gathan se sambandhit  ek prastav  diya  jo is prakar  that.


1) dono karypalika me ek jaisa sankhya me logo ko naamit  karna.

2) alpsankhyak  visheshkar anusuchit  jaati  or shikho  ka pratinidheetva  .

3) sarkar ka gathan   karna  jo ki
US samay   prachhalit  Bharat  shasan   adhiniyam  1935 ke anusaar  kaanchi karti  this.



Mahatma gandhi  ne bhulabhai jivan ji desai  ko Muslim community  ke naita  ko khush karne or rajniteek gatirodh ko door karne ka prastav ka nirdesh diya. 

Lekin is prastav  ko dono  ke naita  ne  oupchharik anumodit kar diya



Diwali

Birsa munda andolan


Tuesday, 6 November 2018

Shimla samjhota शिमला समझौता | क्या आप जानते हैं शिमला समझौता के बारे me

Shimla  samjhota 

१९७१ का भारत-पाक युद्ध के बाद भारत के शिमला में एक संधि पर हस्ताक्षर हुए।[



 इसे शिमला समझौता कहते हैं। इसमें भारत की तरफ से इंदिरा गांधी और पाकिस्तान की तरफ से ज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो शामिल थे। 

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यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच दिसम्बर 1971 में हुई लड़ाई के बाद किया गया था, जिसमें पाकिस्तान के 93000 से अधिक सैनिकों ने अपने लेफ्टिनेंट जनरल नियाजी के नेतृत्व में भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण किया था और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को बंगलादेश के रूप में पाकिस्तानी शासन से मुक्ति प्राप्त हुई थी। यह समझौता करने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्रीज़ुल्फ़िक़ार अली भुट्टो अपनी पुत्री बेनज़ीर भुट्टो के साथ 28 जून 1972 को शिमला पधारे।


Shimla samjhota image
Shimla agriment 




 ये वही भुट्टो थे, जिन्होंने घास की रोटी खाकर भी भारत से हजार साल तक जंग करने की कसमें खायी थीं। 28 जून से 1 जुलाई तक दोनों पक्षों में कई दौर की वार्ता हुई परन्तु किसी समझौते पर नहीं पहुँच सके। इसके लिए पाकिस्तान की हठधर्मी ही मुख्य रूप से जिम्मेदार थी। तभी अचानक 2 जुलाई को लंच से पहले ही दोनों पक्षों में समझौता हो गया, जबकि भुट्टो को उसी दिन वापस जाना था। 




Shimla samjhota image
Shimla samjhota 



इस समझौते पर पाकिस्तान की ओर से बेनजीर भुट्टो और भारत की ओर से इन्दिरा गाँधी ने हस्ताक्षर किये थे। यह समझना कठिन नहीं है कि यह समझौता करने के लिए भारत के ऊपर किसी बड़ी विदेशी ताकत का दबाव था। इस समझौते से भारत को पाकिस्तान के सभी 93000 से अधिक युद्धबंदी छोड़ने पड़े और युद्ध में जीती गयी 5600 वर्ग मील जमीन भी लौटानी पड़े। इसके बदले में भारत को क्या मिला यह कोई नहीं जानता। 






यहाँ तक कि पाकिस्तान में भारत के जो 54 युद्धबंदी थे, उनको भी भारत वापस नहीं ले सका और वे 41 साल से आज भी अपने देश लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं। अपना सब कुछ लेकर पाकिस्तान ने एक थोथा-सा आश्वासन भारत को दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर सहित जितने भी विवाद हैं, उनका समाधान आपसी बातचीत से ही किया जाएगा और उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर नहीं उठाया जाएगा। लेकिन इस अकेले आश्वासन का भी पाकिस्तान ने सैकड़ों बार उल्लंघन किया है और कश्मीर विवाद को पूरी निर्लज्जता के साथ अनेक बार अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाया है।









 वास्तव में उसके लिए किसी समझौते का मूल्य उतना भी नहीं है, जितना उस कागज का मूल्य है, जिस पर वह समझौता लिखा गया है। इस समझौते में भारत और पाकिस्तान के बीच यह भी तय हुआ था कि 17 दिसम्बर 1971 अर्थात् पाकिस्तानी सेनाओं के आत्मसमर्पण के बाद दोनों देशों की सेनायें जिस स्थिति में थीं, उस रेखा को ”वास्तविक नियंत्रण रेखा“ माना जाएगा और कोई भी पक्ष अपनी ओर से इस रेखा को बदलने या उसका उल्लंघन करने की कोशिश नहीं करेगा। लेकिन पाकिस्तान अपने इस वचन पर भी टिका नहीं रहा। सब जानते हैं कि 1999 में कारगिल में पाकिस्तानी सेना ने जानबूझकर घुसपैठ की और इस कारण भारत को कारगिल में युद्ध लड़ना पड़ा।





 Is samjhote me  bharat  ko keval  nuksaan  hi hua

interim government अंतरिम सरकार in English

interim government On 2 September 1946, the newly elected Constituent Assembly constituted the Interim Government of I...